CG के IPS अफसर मच्छर से परेशान:आरिफ शेख बोले-इसका कोई इलाज नहीं;सालाना 80 लाख से ज्यादा खर्च,लेकिन रायपुर के मच्छर नहीं मरते

राजधानी रायपुर में आम आदमी से लेकर अब अफसर भी मच्छरों से परेशान हैं। पॉश और व्यवस्थित इलाकों में रहने वाले एक अफसर को जब मच्छर ने काटा तो उनका दर्द फनी अंदाज में सोशल मीडिया पर छलका। छत्तीसगढ़ के एंटी करप्शन ब्यूरो के हेड IPS आरिफ शेख इन दिनों रमजान की वजह से सुबह जल्दी उठ रहे हैं। मगर हल्की सी नींद लेने की कोशिश करते हैं ताे मच्छरों का अटैक परेशान कर देता है। अफसर ने मच्छरों को लेकर क्या कुछ लिखा, पढ़िए उन्हीं के शब्दों में। रायपुर शहर में मच्छरों के प्रकोप की स्थिति समझिए इस रिपोर्ट में।

अर्ली टू बेड अर्ली टू राइज सिद्धांत को मैं एकदम अपने में इंस्टिल कर दिया हुं…आज कल रमजान में सुबह 4 बजे उठने के बाद फिर नींद आना बड़ा मुश्किल होता है और जल्दी सोने की कोशिश करो तो कुछ न कुछ व्यावधान उत्पन्न हो ही जाता है। आप फोन साइलेंट पे कर दोगे, साउंड प्रूफ खिड़कियां लगा दोगे, लाइट भी संतुलित रखोगे, सूदिंग म्यूजिक लगा के निंदियारानी का इंतजार कर रहे होंगे पर ये मच्छर नामक चीज … उफ्फ इसका कोई इलाज ही नहीं….रात भर राफेल नडाल से ज्यादा शॉट्स मॉस्किटो रैकेट से मारने पर भी कोई निजात नही मिलती…और मच्छरदानी में एक मच्छर भी अगर घुस जाए तो सारी रात वही होता है…नाना पाटेकर की भाषा में आप जानते ही हो।

मेरा खून भी मुझे लगता है कुछ विशिष्ट द्रव्य से बना हुआ है, मैं अगर किसी समूह में कही बैठा हूं या कहीं खड़ा, ये मच्छर बाकी सब लोगो को इग्नोर कर के ….जाना होता है और कही ….तेरी ओर चला आता हूं…टाइप मुझे ही आके कांटते रहते है( मेरे बेटे को भी विरासत में ये सुपर पावर मिल गई है..बड़ी ताकत से बड़ी जिम्मेदारी आती है। अब बेचारा वो भी इसे झेल रहा है )। पहले मुझे लगा की शायद मेरा खून मीठा है और मच्छर इसलिए अट्रैक्ट होते है, लेकिन मेरे साथ बहुत मित्र बैठते हैं, जिन्हे डायबिटीज है और उनके खून में ज्यादा शुगर होती है फिर भी मच्छर भाई साहब उनको फ्रेंडजोन में डाल के सारा प्यार मुझसे ही ज़ाहिर करते है।

मच्छर भगाने के अजीबोगरीब हैरतंगेज तरीके भी मैने अपनाए हैं। बचपन में कच्छवा छाप अगरबत्ती ( कच्छवा जलाओ!) से यह सफर शुरू होता है। पहले तो ये अगरबत्ती एक दूसरे से अलग कराना ही एक पहेली सुलझाने की तरह होता था..और अमूमन ये टूट जाया करती थी( हम भाई बहनों में ये प्रतियोगिता रहती थी की जो ये बिना तोड़े अलग करेगा अगरबत्ती वही जलाएगा। उसका स्टैंड भी अपने आप में एक कलाकारी थी। सुबह उठने पे जमीन पे बना वो उसकी राख का चक्र मच्छरों के चक्रव्यूह को तोड़ने का उसका संघर्ष दर्शाता था।

फिर आया गुड नाईट, रोज रात तो एक मैट लगाते थे। महीने में 30 मैट लगते थे, लेकिन भारतीय जुगाड कैसे खून से जायेगा? एक मैट को अल्टी पलटी कर के 15 दिन और खींचा जाता था, और तो और..बाद में इसिको जला के अगरबत्ती टाइप उपयोग किया जाता था( शार्क टैंक में थोड़ी ना ऐसे ही हम लोगो को फंडिंग मिलता है )। सबसे बड़ी कहानी है ऑलआउट की उसकी एक एड आती थी TV पे, जिसमें एक जापानी आदमी दिखाया गया है और ये ऑलआउट में से एक लम्बी जीभ निकलती है और मच्छरों को निगल जाती है। ये एड देख के मैने बचपन में इसको लाने की जिद पकड़ी ( मेरा dedication देख रहे हो मच्छरों के प्रति, खिलौना नही मैने आलआउट मांगा)..रात भर मैं जागता रहा, लेकिन ऑलआउट में से कोई जीभ नही निकली जो मच्छरों को खा लेती है..

चाहे ओडोमास लगाओ, फॉगिंग कराओ या फिर सिक्विड स्प्रे ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे..ऐसा नहीं की मच्छर सिर्फ यही का इशू है, जब मैं अमेरिका गया था तो शायद मच्छर भाई भी मुझे फॉलो कर रहा था, या फिर उसने वहां के विदेशी मच्छरों को शायद वायरलैस मैसेज कर दिया हो..वहां पे भी मेरी खूब खातिरदारी हुई है। इनके द्वारा वो भी सब जीरो टेंपरेचर में।सर्दी हो गर्मी हो, पश्चिम हो या पूरब हो, देश हो विदेश हो मैने सब जगह अपना अमूल्य खून इनपर कुर्बान किया है। मैने खून दिया है लेकिन मुझे अब तक इनसे आजादी नहीं मिली है।

अभी याद आया रोबोट में चिट्टी को भयंकर शक्ति थी इन मच्छरों को काबू में करने की…मेरा टेस्ला के मालिक एलन मस्क से विनम्र निवेदन है की इसका भी कुछ उपाय निकालें और मिनी चिट्‌टी का मास प्रोडक्शन शुरू करें।

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