मंथन साहित्यिक परिवार की साप्ताहिक काव्य गोष्ठी सम्पन्न

मंथन साहित्यिक परिवार की साप्ताहिक काव्य गोष्ठी रेखा राठौर सुसनेर (म. प्र.) की अध्यक्षता , सुभाषचन्द्र शर्मा जयपुर के मुख्य आतिथ्य, कविता व्यास रतलाम के विशिष्ट आतिथ्य, बच्चूलाल दीक्षित, म.प्र. के संयोजकत्व तथा डाॅ मनीष दवे, इंदौर के संचालन  में संपन्न हुई। 

प्रथमतः सुभाषचंद्र शर्मा से देश के ज्वलंत मुद्दों पर संक्षिप्त चर्चा से शुरुआत हुई। उन्होंने नीरज, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर जैसी महान प्रतिभाओं से प्रभावित होकर प्रेरणा लेने की बात कही। फिर आगंतुक कवियों ने रचना पाठ किया। बृज व्यास (पूना) का गीत नरपिशाची सोच ने जीना किया दुस्सार है, गीता उनियाल (उत्तराखंड) सुविचार पर, राजेश शर्मा (नागपुर) वर्षा की बूंद गिरती है मेरे आंगन में और मेरे दिल में विरह की आग लग जाती है, कविता पूणताम्बेकर (शाजापुर) समय के साथ चलना तुम सफर मुश्किल नहीं होगा, भले कांटों भरा रास्ता, डाॅ. शिवदत्त शर्मा(जयपुर) कहां छुपे हो मुरली वाले किसको गीता सुना रहे हो, बेला विरदी (हरियाणा) खड़ा वृक्ष क्षण में सहम गया हिलकर अपनी जड़ तक, 

विशिष्ट अतिथि कविता व्यास विवेक (रतलाम) गोविंद ज्ञानेश्वर हरि माधव मोहन और मुरलीधर क्या लिखें इस बनावटी युग से, गिरीश पाण्डेय (काशी) चुरा के नींद जो बैठा है मेरी रातों की, उसे भी इश्क हो जीना हराम हो जाए। मैं संग (पत्थर) होके भी पारस के साथ रहता हूँ।कभी तो मेरा सोने सा दाम हो जाए। 

वहीं प्रतिभा पाण्डेय (चैन्नई) ने आज शोर बेहिसाब हो रहा है, हर दिल में अलाव जल रहा है, बेलाजी की प्रतिक्रिया आज हाथों में उछलती पट्टियां फिर भी गांधारी के आंखों पे बंधीं हैं पट्टियां, संगीता माहेश्वरी (मनासा, नीमच) जीवन में सुख-दुख के मौसम हैं आते जाते, मुख्य अतिथि सुभाष शर्मा (जयपुर) अंतर्मन की पीडा़- नैनों से बह रहे आज आंसुओं को बह जाने दो घनी भूत है अंतर्मन की पीड़ा को बह जाने दो, प्रकाश हेमावत (रतलाम) की निर्भया की नृशंस हत्या पर पीडा़ आंसू इस बात की गवाह दे रहे हैं फांसी क्यों नहीं हुई, प्रो.राम पंचभाई (यवतमाल, महाराष्टृ) एक क्षत विक्षत बेटी का बलात्कार हुआ है। इसी वाक्य पर बेलाजी, शिवदत्तजी के साथ सुभाष जी आदि की आंखे रचना के अंतिम शब्द “चैनल बदला गीत आ रहा था तूं चीज बडी़ है मस्त मस्त”इसी क्रम में संजय एम तराणेकर, फ़िल्म समीक्षक (इंदौर) हे कृष्ण आओगे ना हे मुरलीधर आओगे ना इन दु:शासनों पर चक्र बरसाओगे ना, इंजी. खण्डेलवाल (ब्रजवासी) निर्भया खूब टटोल रही है आज उस आत्मा को लेकर फिर बोल रही है, कैलाश वशिष्ठ (रतलाम) उड़ते गगन चाहे पंछी को पंख दे, बच्चूलाल दीक्षित (ग्वालियर) की जंगलराज पर प्रस्तुति उपरांत रेखा राठौर ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कवियों की प्रस्तुतियों की क्रमवार समीक्षा करते हुए काव्यगोष्ठी को नारी सशक्तीकरण निरूपित किया।

डाॅ मनीष दवे ने आभार व्यक्त करते हुए बंगाल में महिला प्रशिक्षु डाॅक्टर की नृशंस हत्या पर कठोरतम दंड अविलम्ब देने का  सरकार को पटल की ओर से भेजने का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वानुमति से पारित किया गया।

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