सरसों एवं चना प्रदर्शन फसलों का किया निरीक्षण

शत्रुघन प्रताप पाल, ब्यूरो रिपोर्ट, चित्रकूट।

चित्रकूट 04 मार्च 2022। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डा. त्रिलोचन महापात्रा ने गत दिवस अपने चित्रकूट प्रवास के दौरान दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा संचालित नाना जी श्रद्धा केंद्र बन्दर कोल प्रक्षेत्र उत्तरप्रदेश का भ्रमण किया। जहाँ विश्व बैंक से वित्त पोषित वैश्विक पर्यावरण सुविधा परियोजना के अंतर्गत लगाए गए चने एवं सरसों की 10:10 प्रजातियों के प्रदर्शन परीक्षणों का अवलोकन किया एवं बीज उत्पादन हेतु लगाई गई सरसों की परंपरागत प्रजाति देशी लाहा का अवलोकन कर निर्देश दिया कि नाना जी श्रद्धा केंद्र के प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाये बिना स्थानिक, कम लागत की पर्यावरण हितैषी संरक्षण और प्रबंधन प्रौद्योगिकियों का विकास कर कृषि उत्पादकता को बढ़ाया जाये। इस अवसर पर दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव श्री अभय महाजन एवं कोषाध्यक्ष श्री वसंत पंडित सहित कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकगण प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

नानाजी श्रद्धा केंद्र बंदरकोल में आईसीएआर के महानिदेशक ने बीज उत्पादन हेतु लगाई गई सरसों एवं चना प्रदर्शन फसलों का किया निरीक्षण

किसानों के उज्जवल भविष्य के लिए बीज बचाव के रासायनिक तौर तरीकों को बंद कर जैविक व प्राकृतिक तरीकों को फिर से अपनाने की जरूरत

डॉ महापात्रा ने कहा कि भूमि और वर्षा के प्रभावी प्रयोग द्वारा किसानों को टिकाऊ आय देने के लिए स्थान विशेष के अनुरूप फसल पद्धतियों की पहचान की जाए, कृषक मृदा स्वास्थ्य और खाद्य में मिलावट, पर्यावरण प्रदूषण आदि समस्याओं से जूझ रहे हैं। कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से स्थिति और बिगड़ती जा रही है। इन उभरती चुनौतियों के समाधान के लिए संभाग स्तर पर अजैविक दबाव प्रबंधन (सूखा, शीत लहरी, बाढ़, लवणता, क्षारीयता, अम्लीयता और पोषण में कमियां आदि) जलवायु अनुकूल कृषि, संरक्षण कृषि – जैविक खेती, मृदा और जल का जैव उपचार, बायोफोर्टिफिकेशन, जैवईंधन, जैव-उद्योग जलसंभर और सूक्ष्म स्तरीय भूमि उपयोग नियोजन के लिए विकास आदि की अनुसंधान प्राथमिकताएं तय की हैं।

पोषण और जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिए नैनोप्रौद्योगिकी और मृदा गुणवत्ता जांच के लिए बायोसेंसर का विकास भी किया जाय।

बंदरकोल में दीनदयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत वैश्विक पर्यावरण सुविधा परियोजना का काम देख रहे कृषि वैज्ञानिक सत्यम चौरिहा ने बताया कि आज खेती के आधुनिकीकरण के कारण बीजों के लिए किसान बीज कम्पनियों पर निर्भर होते जा रहे हैं व साथ ही कंपनियां बीजों के रखरखाव के लिए विविध प्रकार के रसायनों का प्रयोग कर रही हैं। बीजों के लिए किसानों का बीज कम्पनियों पर निर्भरता आने वाले समय में अपने बीजों के अभाव व बाजार में बढ़ती बीजों की कीमतों की वजह से गरीब किसान बीज नहीं खरीद पायेगा या फिर वह कर्जें के दुशचक्र में फंसता चला जायेगा। इस तरह धीरे-धीरे स्वतः ही बीजों का संवर्धन किसान के हाथों से निकल कर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों में चला जा रहा है।

इस दुशचक्र में किसान को फंसने से बचाने के लिए हमें पारंपरिक देसी बीजों को बचाकर रखने व अन्न भंडारण की नई तकनीकों की इजाद करने की आवश्यकता है। किसान व बीजों को अपने पारम्परिक, प्राकृतिक तौर तरीकों व संसाधनों से अपने ही खेत खलियानों व घरों में बचा सकता है। गरीब किसानों के उज्वल भविष्य के लिए बीज बचाव के रासायनिक तौर तरीकों को बंद करना होगा। किसानों द्वारा बीज संग्रहण, संरक्षण व अन्न भंडारण के कुछ जैविक व प्राकृतिक तरीके द्वारा किसानों ने सदियों से बीजों को बचाया है, यहाँ पर प्रस्तुत किये गये हैं।

इसी क्रम मे वैश्विक पर्यावरण सुविधा परियोजना के अंतर्गत आरोग्यधाम मे केंद्रीय सामुदायिक बीज बैंक की स्थापना की गई है, जिसमें बीजों के रख रखाव हेतु वैज्ञानिक प्रबंध एवं कृषक मॉडल तैयार किया है, जिसमें बीजो का संरक्षण जियोलाइट बॉल्स द्वारा किया जायेगा। जियोलाइट बॉल्स एक प्रकार का सेरेमिक तत्व है जो अपने शारीरिक भार का 20% नमी का अवशोषण करता है एवं नमी को अवशोषित करके जब यह संतृप्त हो जाता है इसके उपरांत ऐसे 200 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम पर गर्म करने पर यह पुनः प्रयोग में लाया जा सकता है सामान्यता: बीजों को संरक्षित करने हेतु 12 से 14% नमी पर्याप्त होती है लेकिन यदि इस नमी को 9 से 10% तक ले आया जाए तो बीज का श्वसन गुणांक कम हो जाएगा एवं एवं बीज की जीवन क्षमता बढ़ जाएगी। इस प्रकार जिओलाइट के प्रयोग से लुप्तप्रॉय परम्परागत प्रजातियों को सरंक्षित कर सकते है।

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