
‼️ उदित हो प्रेम और भक्ति का चन्द्रमा , यही संदेश देती हैं शरद पूर्णिमा 🎑 ‼️
शरद पूर्णिमा की दिव्य रात्रि में चंद्रमा से चंद्रिका के रूप में अमृत की वर्षा होती हैं। शरद पूर्णिमा ग्रीष्म से शरद में प्रदेश का द्वार हैं। इसे भक्ति व प्रेम के रस का समुद्र भी माना गया हैं । शरद पूर्णिमा शरद ऋतु का विशिष्ट पर्व हैं। शरद पूर्णिमा का चंद्रमा और उसकी उज्ज्वल चंद्रिका सभी को माधुर्य व आनंद की अनुभूति कराती हैं। माना जाता हैं कि शरद पूर्णिमा की दिव्य रात्रि में चंद्रमा से चंद्रिका के रूप में अमृत की वर्षा होती हैं । शरद पूर्णिमा ग्रीष्म से शरद में प्रदेश का द्वार हैं। इसे भक्ति व प्रेम के रस का समुद्र भी माना गया हैं । इसको कन्हैंया की बंशी का प्रेमनाद एवं जीवात्मा व परमात्मा के रास रस का आनंद भी कहा गया हैं। इस बार नव अक्टूबर को शरद पूर्णिमा हैं । शरद पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु और विघ्नहर्ता गणेश जी एक साथ दीपावली तक पृथ्वी पर वास करते हैं और दीपावली तक तीनों देवों का पूजन किया जाता हैं । मान्यता हैं कि धन-संपत्ति की अधिष्ठात्री भगवती महालक्ष्मी शरद पूर्णिमा की रात्रि में पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं । चंद्रदेव अपनी पत्नियों के साथ इस दिन पूर्ण कलाओं से युक्त होकर सभी को अमृत देते हैं । आयुर्वेद में मान्यता हैं कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की अमृतमयी रश्मियां ना केवल हमारे मन पर, अपितु समूची प्रकृति पर विशेष प्रभाव डालती हैं । इस दिन हम सभी का मन उमंगों से सराबोर हो जाता हैं। चूंकि मान्यता हैं कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा से अमृत झरता हैं, इसलिए इस रात्रि को खुले आकाश के नीचे दूध व चावल से बनी खीर रखने का विधान हैं । आयुर्वेद की मान्यता हैं कि इस खीर को खाने से शरीर निरोग, मन अत्यंत प्रसन्न और आयु में वृद्धि होती हैं । इस दिन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित चंद्रमा के 27 नामों वालें “चंद्रमा स्तोत्र” का पारायण करने का भी विधान हैं। मान्यता हैं कि शरद पूर्णिमा की पीयूष वर्षिणी रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीधाम वृंदावन के वंशीवट क्षेत्र में यमुना तट पर असंख्य ब्रज गोपिकाओं के साथ दिव्य महारास लीला की थी। उन्होंने अपनी लोक विमोहिनी बंशी बजाकर गोपिकाओं को एकत्रित किया, फिर योगमाया के बल पर पूर्णिमा की रात्रि को छह माह जितना बड़ा बनाकर दिव्य महालीला की थी। इस लीला में समस्त गोपिकाओं को यह अनुभव हो रहा था कि श्रीकृष्ण केवल उन्हीं के साथ हैं । कहा जाता हैं कि भगवान शिव भी गोपी का रूप धारण कर इस लीला को देखने आए थे, तभी से भगवान शिव का एक नाम “गोपीश्वर महादेव” एवं भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम “रासेश्वर श्रीकृष्ण” पड़ा।श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में 29 से 33वें अध्याय तक महारास लीला का विस्तार से वर्णन हैं। महारास लीला का मूलभाव यह हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण आत्मा हैं । आत्मा की वृत्ति राधा हैं । आत्माभिमुख वृत्तियां गोपियां हैं। इन सभी का निरंतर आत्मरमण ही महारास हैं । भगवान श्रीकृष्ण के समान ही गोपिकाएं परम रसमयी व सच्चिदानंद मयी थीं , इसलिए वे भगवान श्रीकृष्ण की मुरली की सम्मोहक पुकार सुनते ही अपने पारिवारिक दायित्वों को छोड़कर उनके पास चलीं आईं । उनका यह त्याग धर्म, अर्थ और काम का त्याग था। चूंकि भगवान श्रीकृष्ण का सान्निध्य मोक्षदायक हैं, इसलिए उन्होंने उसकी प्राप्ति के लिए अन्य पुरुषार्थों को त्याग दिया। यह उनके विवेक और वैराग्य का सूचक था । विवेक के ही द्वारा नित्य व अनित्य का ज्ञान होता है और वैराग्य लोक-परलोक के भोगों में अलिप्तता का सूचक हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने जब गोपीकाओं को अपने नारी धर्म के निर्वाह का उपदेश दिया तो उन्होंने उनसे यह कहा कि आप ही नित्य हैं, अन्य सभी संबंध अनित्य हैं । अतः आपसे अनुराग रखना ही हम सभी का धर्म है। इसका सार यह है कि यदि जीव ईश्वर से एकाकार होना चाहता हैं तो उसे अपने अहंकार व अभिमान का त्याग करके “कृष्ण” नामक परम तत्व से जुड़ना होगा। शरद पूर्णिमा के दिन श्रीधाम वृंदावन में चहुंओर अत्यंत विकट, अद्भुत व निराली धूम रहती हैं। क्योंकि शरद पूर्णिमा, वृंदावन और महारास एक-दूसरे के पूरक हैं । यहां भगवान श्रीकृष्ण द्वारा की गई अपूर्व रस-वृष्टि की अजस्त्र धारा आज भी अनुप्राणित कर रही हैं । इसीलिए शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता हैं।आज समूचा विश्व ताप से आहत हैं, क्योंकि इस यांत्रिक युग में तनाव, दुर्भावनाएं एवं पारस्परिक विद्वेष आदि बढ़ गए हैं । ऐसे में हम सभी के जीवन में भक्ति रूपी, पावन व पुनीत चंद्रमा के उदित होने परम् आवश्यकता हैं , ताकि हम सभी के जीवन में भी सदैव अमृत झरता रहें । प्रत्येक व्यक्ति को शरद पूर्णिमा के दिन कम से कम मिनट तक चंद्रमा की किरणों से स्नान करना चाहिए। शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर का सेवन करना चाहिए।खीर से भरे पतीलों, कढ़ाईयों को चंद्रमा की किरणों में रखकर खीर के प्रसाद को बांटना चाहिए।
प्रस्तुतकर्ता : शशिभूषण सोनी