रूप सिंह वर्मा, ब्यूरो रिपोर्ट, ब्यावरा, राजगढ़।
ब्यावरा। होली पर्व के बाद सातवें दिन देवी शीतला माता की पूजा की परंपरा है।इस दिन शीतलामाता की पूजा- अर्चना करने के बाद महिलाएं व्रत रखते हुए 1 दिन पहले रान्धा पुआ के साथ महिला घर घर शीतला सप्तमी बांसोड़ा के लिए भोजन पकवान बनाती हैं। सुबह शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग मंदिर पहुंचकर लगाती हैं। इसके बाद घर के सभी सदस्य ठंडे पकवानों को ही खाते हैं। धर्म ग्रंथों के मुताबिक शीतला माता की पूजा व इस व्रत में ठँडा खाने से संक्रमण और अन्य चेचक जैसी बीमारियां नहीं होती हैं । प्रदेश के कुछ समुदाय के लोग इस त्यौहार को बांसोड़ा कहते हैं। माना जाता है की देवी शीतल चेचक और खसरा जैसी बीमारियों को नियंत्रित करती हैं और लोग उन बीमारियों को दूर करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। माना यह भी जाता है कि ऋतु के बदलने पर खानपान में बदलाव करना है परंपरा बनाई गई है। मगर प्राचीन मानयता है कि जिस घर के महिलाएं शुद्ध मन से इस वृत को करती है,उस परिवार को शीतलादेवी धन – धान्य से पूरण कर प्राकृतिक विपदाओ से दूर रखती है।माँ शीतला का पर्व किसी ना किसी रूप में देश के हर कोने में मनाया जाता है।
