इतिहास एवं साहित्य के परिप्रेक्ष्य में श्रृंगवेरपुर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

Bureau Report, Prayagraj

प्रयागराज : हिन्दुस्तानी एकेडेमी उ0प्र0, प्रयागराज के तत्वावधान में 02 मार्च 2022, बुधवार अपराह्न 2ः00 बजे एकेडेमी स्थित गाँधी सभागार में ‘इतिहास एवं साहित्य के परिप्रेक्ष्य में शृंगवेरपुर’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में एकेडेमी के अध्यक्ष डॉ उदय प्रताप सिंह ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिह्न और शॉल देकर किया। इस अवसर पर डॉ. भृगु कुमार मिश्र की पुस्तक ‘ शृंगवेरपुर क्षेत्रीय हिन्दी साहित्य : परम्परा और प्रदेय’ का विमोचन मचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए हिन्दुस्तानी एकेडेमी के अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि‘ हमारा देश बहुत समय तक गुलाम रहा है अतः आज भी हम अपने साहित्य और इतिहास को यूरोपीय दृष्टि से देखना चाहते हैं। हम अपने नजरिए से इसे नहीं देख पाते। हमारा इतिहास कोई अलग से नहीं पढ़ाया जाता था वह साहित्य में ही समाहित था। पुराण ही हमारा इतिहास है। मार्क्सवाद धर्म को अफीम कहता है पर हम धर्म को संजीवनी कहते हैं। हम दूसरे के अनुकरण पर चलते हैं। हम अपने अंदर के इतिहास, संस्कृति को नहीं समझ पाते हैं। हमारी ‘महाभारत’ में, रामायण में हमारा इतिहास छुपा है। इन कथाओं में शृंगवेरपुर का वर्णन मिलता है’।  कार्यक्रम के मुख्यअतिथि चंडीगढ़ से आये प्रो. जय प्रकाश ने ‘इतिहास एवं साहित्य के परिप्रेक्ष्य में शृंगवेरपुर’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ‘ प्रायः स्थान व्यक्ति के संबंध से महत्वपूर्ण हो जाता है। शृंगवेरपुर का सौभाग्य दोहरा-तिहरा है। शृंगी ऋषि भगवान रामानुज सहित सीता-राम तथा निषादराज गुह के संपर्क से शृंगवेर तीर्थ ही नहीं महातीर्थ बन गया है। इस क्षेत्र की पवित्रता और उर्जा के प्रभाव से यहाँ श्रेष्ठ साहित्य की सर्जना का होना स्वाभाविक ही था और हो रहा है। भृगु कुमार मिश्र के पुरुषार्थ से इस साहित्य को प्रकाश में लाने का महदुद्योग किया गया है, इसके लिए वे साधुवाद के अधिकारी हैं।’ इस अवसर पर डॉ. बलवेन्द्र सिंह ने कहा कि ‘ डॉ. भृगु कुमार मिश्र ने शृंगवेरपुर क्षेत्रीय हिन्दी साहित्य परम्परा और प्रदेय विषय इतिहास-ग्रंथ रचकर अनेकविध महत्व का कार्य किया है। रामकथा से सम्बन्धित शृंगवेरपुर क्षेत्र में महाकाव्य-काल से लेकर आधुनिक काल तक हुई साहित्य-सर्जना का वैज्ञानिक विशेषण इस ग्रंथ की महत्ता और विशेषता है। पाण्डुलिपियों, पुरातात्विक अवशेषों, संदर्भ-ग्रंथों साक्षात्कारों, पत्रों आदि की सहायता से यह वृहत् ग्रंथ  लोकोपयोगी सिद्ध होने वाला है।’ संगोष्ठी में उदय शंकर दुबे ने ‘इतिहास एवं साहित्य के परिप्रेक्ष्य में शृंगवेरपुर’ विषय पर बात करते हुए कहा कि ‘प्रयागराज के अन्तर्गत सुरसरि के उत्तरीय तट पर स्थित शृंगवेरपुर ऐतिहासिक और साहित्य में अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ क्षेत्र है। रामायण काल से लेकर आज तक यह निरन्तर विकास की ओर आगे बढ़ता जा रहा है। यहाँ का इतिहास हमें राम के आगमन पर निषाद राज द्वारा उनकी की गयी सेवा का स्मरण दिलाता है। जहाँ तक साहित्य का प्रश्न है राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार में शृंगवेरपुर का र्प्याप्त योगदान रहा है और आज भी है। शृंगवेरपुर के राजा देवकीनंदन सिंह के राजत्वकाल में विक्रम सम्वत् 1861, सन् 1804 में कवि ठाकुर ने बिहारी सतसईं की सतसईंया वर्णार्थ प्रकाशिका टीका की रचना की थी। संगोष्ठी के अन्तिम वक्ता डॉ. भृगु कुमार मिश्र ने कहा कि ‘श्रृंगवेरपुर एक स्थल नहीं त्रेतायुगीन नाग जाति के निषादराज गुह का राज्य था जिसका विस्तार उत्तर में सईं नदी और दक्षिण में गंगा नदी था। इस राज्य में खड़ी बोली में पहली कृति नीति सुधा तरंगिणी थी जिसके रचनाकार राम प्रसाद तिवारी लेहरा शांतिपुरम के थे। भक्तिकालीन विद्वान तुलसीसमकालीन देवमुरारी थे और नागोजी भट्ट तथा सेनापति एक हैं। तथा कवि ठाकुर की ‘सतसैया वर्णनार्थ’ सिद्ध करती है कि राधा रचनाकार थी ना कि बिहारी। पाण्डुलिपियों की खोज महत्वपूर्ण है – होरी श्री राम नखसिंह तथा सतसैया वर्णनार्थ और राम सिंह की विनय शतक महत्वपूर्ण है।’ कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनिल कुमार मिश्र ने किया तथा अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी की प्रकाशन अधिकारी  ज्योतिर्मयी ने किया । कार्यक्रम में उपस्थित विद्धानों में राम नरेश तिवारी ‘पिण्डीवासा’, डॉ. राधेश्याम अग्रवाल, डॉ. वीरेन्द्र कुमार तिवारी, रणंजय सिंह सहित शोधार्थी एवं शहर के गणमान्य विद्वान आदि उपस्थित रहे।

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