कथा मे जैसे ही श्रीकृष्ण जन्म प्रसंग आया पूरा पंडाल हाथी घोडा पालकी जय कन्हैयालाल के जयकारों से गूंज उठा
श्रद्धालुओं ने बाल स्वरूप श्रीकृष्ण के दर्शन किए और व्यासपीठ पर विराजित बालव्यास पं.श्री ऋषि गर्ग महाराज जी ने कान्हा को दुलारा।

कथा में बालव्यास पं.श्री ऋषि गर्ग महाराज जी श्रीकृष्ण प्रसंग सुनाते हुए कृष्ण की बाल लीला का वर्णन करते हुए कहा कि कंस के अत्याचारों के कारण ही उसने अभिमान और अनितिपूर्वक राज करने के लिए अपने पिता उग्रसेन को बंदी बना लिया था। आकाशवाणी से अपनी भावी मृत्यु का संकेत पाकर उसने अपनी बहन देवकी और बहनोई वासुदेव को बंदी बनाकर कारागार मे डाल दिया। वहां एक-एक कर उनके छह पुत्रों की हत्या कर दी। सातवें गर्भ में खुद शेषनाग के आने पर योग माया ने उनके देवकी के गर्भ से निकाल कर वासुदेव की पहली पत्नी रोहणी के गर्भ मे स्थापित कर दिया। भगवान ने आठवी संतान के रूप मे जन्म लिया। इस दौरान बालकृष्ण को कंस के कारागार से नंद बाबा के घर ले जाने की झांकी भी प्रस्तुत की गई। कथा मे बालव्यास पं. ऋषि गर्ग महाराज जी ने रसास्वादन करवाते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी को रात्री 12 बजे रोहिणी नक्षत्र मे हुआ। भगवान कृष्ण ने संसार को अंधेरे से प्रकाश में लाने के लिए जन्म लिया और अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रुपी प्रकाश से दूर किया। पं.ऋषि गर्ग महाराज जी ने कहा कि जब जब धर्म की हानि इस एकता के भंग होने पर हूई है। भगवान ने अवतार लेकर इसे पुनः स्थापित किया हैं। सभी मानव के मानवीयता से अभिसिचि हो सकते हैं। अमानवीयता से नहीं। हम एक थे हम एक है और एक रहेंगे यह युगों का सत्य है।शरीर के अंग पृथक होकर भी एक है। सृष्टि के जीव भिन्ना होकर भी अभिन्ना हैं क्योंकि उसका सृष्टि एक हैं। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के अवसर पर समस्त ग्रामवासी एवं पं.श्री राहुल पाण्डेय सिंगर पंचमी.श्री शिवकांतशास्त्री जी प्रदेश अध्यक्ष बबलू चड़ार बाबू राजा कीर्तन-भजन मण्डली एवं हजारों भक्त गण उपस्थित रहे