महावीर व राम  के सिद्धांतो पर चलकर ही हम अपना कल्याण कर सकते है बा.ब्र.ब्रह्मरूपी जी”

जो धर्म की शरण मे जाता है

धर्म उसको अपनी शरण मे लेता है

\\विनोद-जैन\\

श्री पार्श्वनाथ दिंगबर जैन मंदिर मे विराजमान परम पूज्य आचार्य गुरुवर श्री विराग सागर जी महराज के परम शिष्य बाल ब्रह्मचारी ब्रह्मरूपी जी गुरू जी ने अपने प्रवचनों के माध्यम से बतलाया कि जो धर्म की शरण मे जाता है धर्म उसको अपनी शरण मे लेता है जो धर्म का प्रचार करता है उसका विकास निश्चित है और जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है अर्थार्त निस्वार्थ भाव से किया गया वह हर एक कार्य हमेशा लाभकारी होता है, परन्तु आज का हर व्यक्ति केवल अपने लाभ के लिये ही कार्य करना चाहता है आज प्राय: देखा जाता है की लोग चमत्कार को नमस्कार करते है

प्रर्दशन मे दर्शन ढूढा करते है परन्तु वह पाखंड उस जादूगर की तरह होता है कि एक सौ के नोट से पॉच सौ के नोट की गड्डी बना देता है अगर उसमे सच मे जादू होता तो फिर वह पैसे क्यो मॉगता वह तो एक आलीशान मकान बना कर उसमे आराम से रहता, वह अपनी कला से लोगो मोहित करता है परन्तु वह भी अंत मे यही कहता कि यह सब हाथ की सफाई है, आज उसी तरह सभी को राम के नाम पर महावीर के नाम पर भटकाया जा रहा है हमे सीख दी गई की राम वनो महावीर वनो पर मेरा मानना है कि राम के सिंद्धांतों पर चलो महावीर के सिद्धांतों पर चलो तब जाकर हम राम व महावीर बन सकते है।

मंदिर समिति के कार्यकारी अध्यक्ष दिलीप मलैया, उपाध्यक्ष सुकमाल जैन गोल्डी व मंत्री शैलेष शाह, ने बताया कि गुरू जी का सानिध्य प्राप्त होना एक बहुत बहुत ही सौभाग्य की बात है गुरू जी का जन्म भिंड जिले के मो नगर के यादव परिवार मे हुआ है बचपन से ही उनका मन जिग्यासा प्रवत्ति का था युवा अव्स्था मे ही उनके साथ कुछ ऐसी घटनाये घटी की उनके मन ब्रह्मचर्य को धारण कर जिन धर्म प्रभावना मे संलग्न होकर जीवन को कल्याण करने के भाव जाग्रत हुये और आचार्य गुरुवर विराग सागर जी महराज के समक्ष आजीवन ब्रह्मचर्य ब्रत लेकर जिन धर्म की शरण मे आकर जन जन तक महावीर व राम के सिंधातो को पहुचा कर लोगो का कल्याण कर रहे है