देश-काल-पात्र को पुनः उत्प्रेरित करने की एक सृजनात्मक पहल है “काल-प्रेरणा”

देश-काल-पात्र को पुनः उत्प्रेरित करने की एक सृजनात्मक पहल है “काल-प्रेरणा” – @ पुस्तक समीक्षा/ कमलेश पांडेय, संपादक, काल-प्रेरणा

आईएएस अधिकारी डॉ दिनेश चंद्र सिंह द्वारा लिखित और वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार कमलेश पांडेय द्वारा संपादित बहुचर्चित पुस्तक “काल निर्णय” कोरोना काल की भयावह परिस्थितियों की अनुभूति के क्रम में समसामयिक विषयों को केन्द्र बिन्दु मानकर विभिन्न विषयों पर अतीत के कालजयी पात्रों की आधुनिक काल में प्रासंगिकता की एक उत्कृष्ट विवेचना है। यह पुस्तक पाठकों को प्रतिकूल परिस्थितियों का प्रभावी ढंग से सामना करने की हुनर सिखाती है। 

इस पुस्तक में समकालीन कतिपय शीर्ष राजनेताओं  द्वारा राष्ट्रहित के लिए किये गये कार्यों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है, जिससे यह रोचक और पठनीय है। एक सौ दस पृष्ठ की इस पुस्तक में कुल 16 अध्याय हैं, जिसके 76 पन्नों में मां और मातृभूमि की सम्यक चर्चा विभिन्न दृष्टिकोणों से की गई है। वहीं, शेष 34 पन्नों में लगभग चार दर्जन छायाचित्र के द्वारा लेखक के उस पृष्ठभूमि को दर्शाया गया है, जहां से ऐसी सकारात्मक साहित्यिक कृतियों की वैचारिक पुण्य सलिला के प्रवाहित होने की सोच प्रस्फुटित होती है। वहीं,  गम्भीर पाठकों एवं ज्ञानार्थी छात्रों के मद्देनजर इसकी कीमत मात्र 199/- (एक सौ निन्यानबे रुपये) रुपये रखी गई है, ताकि इसकी पहुंच समाज के सभी वर्गों तक बन सके।

इस पुस्तक में व्यक्तित्व के विकास में बिजनौर जनपद की महत्ता और ऐतिहासिकता के अलावा समसामयिक जटिल और बोझिल परिस्थितियों में उत्तरप्रदेश और भारतवर्ष के कुछ महान शख्सियतों की रचनात्मकता और प्रासंगिकता का गहन चित्रण किया गया है, ताकि समकालीन और परवर्ती पीढ़ी न केवल अपने अतीत पर गर्व कर सके, बल्कि एक सुखद व सुमधुर भविष्य के निर्माण हेतु वह कतिपय वर्णित दृष्टांतों से प्रेरणा भी ले सके। 

कहना न होगा कि आधुनिक विस्मयकारी परिस्थितियों में प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृति के विभिन्न आयामों की महत्ता और उसके परिप्रेक्ष्य में ऐतिहासिक पात्रों यथा- दानवीर भामाशाह, महाराणा प्रताप, रणजीत सिंह, पृथ्वीराज चौहान आदि की विवेचना के साथ-साथ राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, सीडीएस स्व. जनरल विपिन रावत आदि के सरल-सहज व प्रेरणादायी व्यक्तित्व व कर्तृत्व की चर्चा इस इसमें सन्निहित है। इसके अलावा परमपूज्य महंत नरेंद्र गिरी जी महाराज से जुड़े संस्मरण की चर्चा से पाठकों की आध्यात्मिक सोच समुन्नत होगी।

इस पुस्तक में कोरोना काल की भयावह परिस्थितियों की अनुभूति के क्रम में समयामयिक विषयों को केन्द्र बिन्दु मानकर विभिन्न विषयों पर अतीत के कालजयी पात्रों की समसामयिकता, देश-काल-पात्र हित में उनकी पुनः प्रासंगिकता और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उनके द्वारा राष्ट्रहित के लिए किये गये विभिन्न कार्यों की इतनी गहन चर्चा की हुई है। ऐसे महान लोगों से मिली प्रेरणा से अभिभूत होकर लेखक द्वारा समय-समय पर अपनी अनुभूति के आधार पर लिखे गये लेखों का इतना सुंदर समावेश इस पुस्तक में किया गया है कि वह समाज के आम जनमानस के लिए भी अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होगी तथा आने वाली युवा पीढ़ी के लिए यह एक प्रेरणा का स्रोत साबित होगा।

यह पुस्तक हमें मां व मातृभूमि की ममता और करुणा को चित्रित करते हुए कर्मयोग को उत्प्रेरित करती है, जो कि निष्काम कर्म, सकाम लक्ष्य और जनसेवा का प्रतिबिंब हो। यह हमें भारतीय संस्कृति में निहित चिकित्सकीय विधाओं के सामंजस्य भाव को समझाती है। इसमें विधि के विधान और वैज्ञानिक अवदान को बखूबी पिरोया गया है। यह राजा और प्रजा में सामंजस्य पूर्ण समझदारी विकसित करने का आह्वान करती है ताकि बड़े से बड़े आसन्न संकट को टाला जा सके। यह कतिपय दृष्टांतों के माध्यम से
दोषारोपण से बचने और आत्मावलोकन करने की प्रेरणा भी प्रदान करती है। 

यह पुस्तक हम सबसे दानवीर भामाशाह बनने का आह्वान करती है, कुलोचनाशाह नहीं, क्योंकि सुनियोजित कुलोचना से व्यक्ति विशेष का बिगड़ सकता है लेकिन समष्टि का कुछ बन नहीं सकता। यह पुस्तक संत, सत्ता और संधान के विषय में बताते हुए यह अनुभूति भी कराती है कि स्वल्प साधनों से भी कठिन साध्य को साधा जा सकता है, बशर्ते कि इसके लिए व्यक्ति विशेष दृढसंकल्पित हो। 

इस पुस्तक में शाश्वत राजकाज, अपनी माटी और बिजनौर के विभूति की चर्चा के बहाने देश-काल-पात्र के अकाट्य ज्योतिषीय सिद्धांत को देश-प्रदेश-जनपद विशेष की राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य की कसौटी पर कसने का एक साहसिक प्रयास किया गया है। कोरोना प्रकोप से दिवंगत हुई पुण्यात्माओं के प्रति गहरी शोक संवेदना प्रकट करते हुए लेखक ने जनमानस में महामारी का अंधेरा छंटने, मानवता का सूरज निकलने और अपने अपने आराध्यों में अटूट आस्था रखने का जो आह्वान किया है, वह काबिलेगौर है और एक भटके हुए जनजीवन को सही दिशा दिखाने वाला भी।

केरल के राज्यपाल महामहिम मोहम्मद आरिफ खान के शब्दों में कहूँ तो प्रस्तुत पुस्तक को देखने-पढ़ने के बाद ऐसा लगा जैसे यह रचना किसी ऐसे विद्वान के क़लम की उत्पत्ति है जिसने भारतीय सभ्यता व संस्कृति का गहन अध्ययन किया है और जो संभवतः किसी शिक्षण संस्थान में पठन पाठन का काम करता है। सरकारी ज़िम्मेदारियों में व्यस्त किसी प्रशासनिक अधिकारी की ऐसी रचना से यह स्पष्ठ हो जाता है कि वह अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करते समय भारत की सांस्कृतिक विरासत के सनातन मूल्यों से अपनी नज़र नहीं हटने देता है, जो अपने आप में अत्यन्त सुखद अनुभूति है।

पुस्तक के हर अध्याय में चाहे वह देश और प्रदेश के विकास से संबंधित हो, कोरोना से निपटने का संदर्भ हो या जन-कल्याण का मामला हो, समस्या के समाधान का प्रेरणा स्रोत वही हज़ारों वर्ष पुराने हमारे सनातन सिद्धांत नज़र आते हैं जो आज भी न केवल प्रासंगिक और उपयोगी हैं बल्कि उसके साथ भारतीय जनमानस पर अपना गहरा प्रभाव डालते हैं।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि भारतीय संस्कृति आदि काल से ही मानव की अन्तर्निहित दिव्यता में विश्वास करती है। हमारे यहाँ कहा भी गया है: “मनुर् भव जन्या दैव्यम् जनम” अर्थात् हे मनुष्य! तू स्वयं मानवीय गुणों का विकास कर जिससे तू दिव्यता पैदा कर सके। भारतीय पुनरुत्थान के प्रणेता स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि “मेरा आदर्श यह है कि मैं मानव जगत को यह बताना चाहता हूँ कि वह दिव्य हैं और उनकी दिव्यता का प्रकटीकरण जीवन के हर क्षेत्र में होना चाहिये। इस दिव्यता को प्रकट करने का सब से प्रभावी माध्यम भी उन्होंने यह बताया कि मानव सेवा ही माधव सेवा है। यह शिक्षा बुनियादी तौर पर भारत के सनातन मूल्यों से ही आती है। “सर्वशास्त्र पुराणेषु व्यासस्य वचनं ध्रुवम, परोपकारस्तु पण्याय पापाय परपीड़नम।”

इस पुस्तक में डा० दिनेश चन्द्र ‘सिंह’ ने जिस तरह वैदिक ऋचाओं तथा जनकवि तुलसीदास और लोककवि कबीरदास के दोहों के माध्यम से अपनी दलीलों को सशक्त बनाया है, उसे पढ़ने में एक अनूठा आनन्द आता है। इसके हर अध्याय में भारत भूमि के लिये उनका प्रेम और भारतवासियों के कल्याण के प्रति उनकी संवेदनशीलता मुखर हो कर सामने आती है। यह पुस्तक हमें यह समझाने में सफल होगी कि अपनी समस्याओं का समाधान अगर अपने ज़मीनी सन्दर्भों के साथ ढूँढा जाये तो वह अधिक प्रभावशाली होता है। लेकिन इससे भी अधिक यह पुस्तक पाठकों, विशेषतः हमारे युवकों में अपनी संस्कृति और इतिहास के बारे में नई चेतना पैदा करेगी जो हमारी समकालीन आवश्यकता भी है। 

वहीं, इस पुस्तक के सम्पादक कमलेश पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार ने लेखक डॉ दिनेश चंद्र सिंह को जिस रूप में समझने और पाठकों को विनम्रता पूर्वक समझाने की एक उत्कृष्ट पहल की है, वह राष्ट्रहित में एक सम्पादक का निष्पक्ष, निर्भीक व साहसिक प्रयास है ताकि समकालीन व भावी पीढ़ी अपने दौर के महान शख्सियत लोगों की आलोचना से इतर वाजिब प्रशंसा करना भी सीख सके, जिससे ऐसे उदार चेतानाम लोग उत्साहित होकर देश व समाज हित में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सकें। सम्पादक श्री कमलेश पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार की सोच रही है कि एक तस्वीर एक हजार शब्दों के मर्म को महज एक झलक में ही स्पष्ट कर देती है। इसलिए इस पुस्तक में  लेखक के आधिकारिक जीवन काल की कुछ अनूठी व प्रेरणादायी तस्वीरों का समावेश इसमें किया गया है, ताकि पाठकों को यह विषयवस्तु महज एक कोरी कल्पना नहीं लगे और छायाचित्र की मदद से वह समूची परिस्थितियों से सहज ही अवगत हो सकें। 

बता दें कि डीएम, एमएनए, सीडीओ, एडीएम के रूप में डॉ दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस ने स्वच्छता और योग के प्रति जनमानस को जागरूक करने का सदैव प्रयत्न किया है, जो आज भी जारी है। अपनी  पहली पदस्थापना हरिद्वार जनपद (तत्कालीन उत्तरप्रदेश, अब उत्तराखंड) में होने के चलते वो योग गुरु रामदेव के संपर्क में आए और शीर्षासन सहित विभिन्न योग क्रियाओं में इतने पारंगत हो लिए कि देश-प्रदेश की कौन कहे, विदेशों में भी आधिकारिक महकमों के योग प्रेमियों को विभिन्न योगासनों का सफल प्रशिक्षण दिया। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “फिट इंडिया-हिट इंडिया” नामक योगाभ्यास संदेश और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्वच्छता एवं प्रशासनिक सुचिता के संदेश से आईएएस अधिकारी डॉ दिनेश चंद्र सिंह इतने प्रभावित हुए कि जनमानस को जागरूक करने के लिए वो सतत प्रयत्नशील रहने लगे। स्वच्छता एवं योग जागरूकता सम्बन्धी अपनी एक आधिकारिक भ्रमण टीम के साथ जब वे इंडोनेशिया पहुंचे तो वहां भी शीर्षासन सहित विभिन्न योग अभ्यासों के बारे में वहां की समकक्ष टीम को जागरूक किया, जिससे भारत व भारतीयों का सिर ऊंचा हुआ। 

इसके अलावा, छात्र-छात्राओं व आमलोगों को भी उन्होंने स्वच्छता व योग के प्रति जागरूक किया है, जिसकी चुनिंदा तस्वीरें हमने इस पुस्तक में भी समाहित करने की कोशिश की है। गाजियाबाद, मेरठ, बिजनौर, हरिद्वार, अलीगढ़, कानपुर देहात, लखनऊ और बहराइच आदि जगहों की शोध-यात्रा के दौरान हमने पाया कि अपने नेकदिल कार्यों की वजह से डॉ दिनेश चंद्र सिंह जनमानस में काफी लोकप्रिय हैं। इसलिए उनके बारे में गागर में सागर भरने की एक सफल चेष्टा हमने की है।

भारतीय सेना के जवानों और पुलिस की कर्तव्यनिष्ठा से वो इतने प्रभावित रहे हैं कि आलेख व छायाचित्र संकलन में भी उन्हें यथोचित जगह देने व उनके त्याग व बलिदान की भावना का बखान करने की एक सफल कोशिश की है, ताकि देशवासियों में उनके प्रति सकारात्मक भावना का संचार हो।

देखा जाए तो लेखक की यह रचना एक-दो वर्षों की मेहनत का प्रतिफल नहीं, बल्कि दो दशकों की अथक श्रम साध्य साधना और विचार उत्प्रेरणा का परिचायक है। क्योंकि लेखक ने एक प्रशासक के रूप में अपने समसामयिक आलेखों के माध्यम से राष्ट्रवाद व सांस्कृतिक गौरव की परम पुनीत भावना को पुनर्स्थापित करने की मोदी-योगी शासन की योजनाओं को सिर्फ मनोहारी शब्दों के माध्यम से नहीं बल्कि तर्क सम्मत वैज्ञानिक बातों से भरे पौराणिक व ऐतिहासिक दृष्टांतों के हवाले से परिपुष्ट करने की एक नेक पहल की है, जो प्रशंसनीय है।

हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि पाठकों का प्यार लेखक की तीन अन्य पूर्व कृतियों की भांति इस चौथी कृति को भी मिलेगा। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *