बुंदेलखंड गौरव भावलिंगी संत आचार्य विमर्श सागर जी  ससंघ और आचार्य बिबुद्ध  सागर जी महाराज ससंघ का हुआ वात्सल्य मिलन

जैन समुदाय के लोगों  ने शामिल होकर दोनों संघो की भव्य आगवानी

विनोद कुमार जैन

बक्सवाहा – संत समाज के उत्कृष्ट आचरण के कारण भारत देश विश्व गुरु के नाम से विख्यात है भारतीय वसुंधरा पर जैन संत निरंतर पद विहार करते हुए जगत के जीवों का निरंतर कल्याण करते हैं और धर्म प्रभावना करते है इसी क्रम में मंगलवार को भारत के हृदय स्थल मध्य प्रदेश की धर्म नगरी बक्सवाहा में “जीवन है पानी की बूंद” महाकाव्य के मूल रचयिता तथा बुंदेलखंड गौरव भावलिंगी संत राष्ट्रीय योगी आचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज अपने विशालसंघ के साथ पधारे एक और जहां 25 पिच्छीधारी साधु एवं माताजी ससंघ के साथ आचार्य श्री विमर्श सागर जी महाराज ने प्रवेश किया तो वही दूसरी ओर बक्सवाहा और बम्होरी से बिहार करते हुए आचार्य बिबुद्ध सागर जी ससंघ ने प्रवेश किया ! दोनों संघो का परस्पर वात्सल्य मिलन हुआ ! इसे देखने जैन समुदाय के लोग एकत्रित हुए और दोनों संत संघो की भव्य अागवानी की गईं

बक्सवाहा के श्री 1008 पारसनाथ जिनालय में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्श सागर जी महाराज ने स्वरचित “जीवन है पानी की बूँद ” महाकाव्य की पंक्तियां कही

सबसे प्यारा जैन धर्म , अनुभव करते मिटे भर्म !
जैन धर्म के पालन से, मिले सौख्य निज आत्म परम !!
निर्ग्रन्थ गुरु बिन, निज धर्म न पाए रे
जीवन है पानी की बूँद,कब मिट जाये रे !!
होनी अनहोनी۔۔ हो हो ۔۔۔۔कब क्या घट जाये रे !!

साथ ही उन्होंने कहा जिनवाणी को ही जिनागम कहते हैं और जिनागम में आत्मा के कल्याण का जो मार्ग बताया गया ,वह मार्ग अर्थात पंथ “जिनागम पंथ” है ! जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने बताया कि वस्तु के स्वभाव का नाम ही ‘धर्म’ है ! क्षमा ,दया ,रत्नत्रय यही जैन धर्म का सार है हमें गौरव होना चाहिए कि हमारे पूर्वजों ने हमें छन्ना प्रदान किया ! छन्ना का प्रयोग पानी छानने के लिए किया जाता है और प्रत्येक जैन परिवार में छन्ना होने का अर्थ यह है कि वह दया धर्म का पालन करते हैं और जैन धर्म का अर्थ ही “दया धर्म “है !